चोटी की पकड़–94

प्रभाकर के गाने के भाव पर तूफ़ान उठा। एजाज की गायिका हिली।


 स्वदेशी आंदोलन में आज की धनिक और श्रमिक की जैसी समस्या न थी; पर आंदोलन को असफल करने के लिए यह समस्या लगाई गई थी। 

प्रभाकर विचार करता था तब तक साहित्य द्वारा रूस के जन-आंदोलन की ख़बरें आने लगी थीं। ज़मींदार मुसलमान स्वदेशी के तरफदार थे; इसलिए मुसलमान रैयत बहुत बिगाड़ नहीं खड़ा कर सकी। 

पुराणों का राज्य समाज में तब और प्रबल था, बादशाहत का लहजा नहीं बिगड़ा था। प्रभाकर सोचता हुआ बैठा रहा। गाने की तरंग उठकर जैसे निकल गई। 

एजाज उसकी गंभीर मुद्रा से प्रभावित हुई। राजा साहब भी खामोश बैठे रहे। देश प्रेम जुआ था। 
रौशनी, पश्चिम का बानिज। स्वामी विवेकानंद की वाणी लोगों में वह जीवनी ले आई, खासतौर से युवकों में, जिससे आदर्श के पीछे आदमी जगकर लगता है। प्रभाकर राजनीति में इसी का प्रतीक था। धैर्य से बैठा रहा।

इशारा पाकर साजिंदे चले। प्रभाकर उठने को था कि दिलावर भीतर आया; राजा साहब के कान में कान लगाया। 

खबर राजनीतिक है। राजा साहब ने प्रभाकर के सामने पेश करने के लिए कहा। दिलावर उछल पड़ा। 

कलकत्तावाले सुबूत दिखाए- वह कागज, नजीर के नाम से यूसुफ का आकर ठहरना, बातचीत करना, होटल में गलत नाम लिखाना।

एजाज से हुलिया पूछा। आदमियों ने बताया। एजाज खामोश हो गई।

प्रभाकर आग्रह-धैर्य से सुनता रहा। राजा साहब ने धन्यवाद देकर सबको बिदा किया। इनाम की घोषणा की।

राजा राजेंद्रप्रताप ने प्रभाकर से पूछा, 'आपका क्या अंदाज है?"

"चर है, सरकारी।"

"अब हमको एक छन की देर नहीं करनी। कलकत्ता रवाना हो जाना है। बँध गया। हमारे पास भी मसाला है। यह वही आदमी है।" एजाज ने कहा।

"लिखा प्रमाण हमको दीजिए।" प्रभाकर ने कहा।

राजा साहब ने कहा, "नहीं, हमीं रखेंगे, बैरिस्टर साहब से सलाह लेंगे, इस तरह आपका भी हाथ हो गया।"

"तो हमें भी आपके साथ या कुछ पीछे, या दूसरे रास्ते से चलना चाहिए।"

"आप परसों या और दो रोज बाद आइए।"

प्रभाकर शांत भाव से उठा, और कहा, "अच्छा, तो आज्ञा दीजिए।"

राजा साहब ने नमस्कार किया।

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